सांचोर के गावों में किसान कर रहे हैं "अनार "
जालोर जिले के मुकाबले सांचोर के केवल दाता गाव में हो रही हैं, अनार।
क्षेत्रमें नर्मदा नहर आने से पहले किसानों की हालत दयनीय थी,बरसात पर निर्भर रहने वाले सांचौर उपखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के दौरान कभी मौसम के साथ नहीं देने से तो कभी ज्यादा बरसात से पकी पकाई फसल खराब हो जाती थी। ऐसे में खर्चे तो दूर बीज के पैसे चुकाने जितनी भी कीमत नहीं मिलती थी। इसके बाद नर्मदा नहर आने से कुछ क्षेत्रों में सीजनल खेती से हालात थोड़े थोड़े सुधरने लगे। जिसपर किसानों ने खेती के साथ नई इजाद होने वाली तकनीक को अपनाना शुरू किया और फसल की पूरी कमाई लेने लगे। इसके इतर दाता गांव के पांच किसानों ने महाराष्ट्र गुजरात के खेतों में बूंद बूंद सिंचाई के जरिए बागवानी खेती का नया प्रयोग देख अपने खेत में अनार के बगीचे लगाए। इसका परिणाम अच्छा रहा पौधों के फल देने की स्थिति में आने पर साल में दो बार उपज लेने लगे। शुरू शुरू में तो उन्होंने प्रयोग के तौर पर मात्र 25 हैक्टेयर में अनार के बगीचे लगाए परिणाम अच्छा आने पर बगीचों का विस्तार करते हुए इस समय पूरे गांव में करीब 70 से 80 खेत हैं जहां किसानों ने अपने खेतों में कुल 125 से 150 हैक्टेयर में अनार के बगीचे लगा करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं।
कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार क्षेत्र के किसान खेती में आधुनिक कृषि तकनीक अपनाने लगे हैं। वहीं जिले की बागवानी खेती का बड़ा भू-भाग सांचौर क्षेत्र में तैयार होता हैं, कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार पूरे जिले में दो सौ हैक्टेयर में अनार की खेती की जाती हैं। जिसमें अकेले सांचौर उपखंड क्षेत्र में करीब 150 हैक्टेयर में अनार की खेती की जा रही हैं। क्षेत्र के दाता, हाडेतर, पथमेड़ा, सांकड,
चार राज्यों के व्यापारी खरीदने आते हैं अनार
क्षेत्रमें अनार की बंपर पैदावार के चलते यहां के अनार की सिंदूरी किस्म की अन्य राज्यों में अच्छी मांग रहती हैं। खासकर गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी कोलकाता के व्यापारी सांचौर में अनार खरीदने आते हैं।
अनार उपज की गणित
अनारकी साल में दो बार पैदावार होती है पहली मई-जून तथा दूसरी पैदावार नवंबर-दिसंबर में आती हैं।अनार की कलम रोपने के साथ ही 28 महीने के दौरान जब पौधा बड़ा होने लगता है तो पहली पैदावार शुरू हो जाती हैं। इस दौरान एक अनार के पौधे से करीबन 70 से 80 अनार उतरते हैं। एक अनार का औसतन वजन 300 ग्राम तक होता हैं, प्रति अनार के पौधे पर 22 किलो तक अनार होती हैं।
दाता गांव में शुरू शुरू में पांच किसानों ने प्रायोगिक तौर पर अपने खेत में अनार के बगीचे लगाए थे। परिणाम सुखद आने पर इन किसानों ने जहां अनार के बगीचों का एरिया बढ़ाया, वहीं इनके देखादेखी बाकी किसानों ने भी अपने खेत में अनार के बगीचे लगाने शुरू कर दिए। पूरे जिले में उत्पादन बागवानी खेती में दाता गांव में जिले भर में होने वाली अनार की खेती के बराबर एक गांव में खेती की जा रही है। जालोर जिले में गत वर्ष के आंकड़ों के अनुसार 150 हेक्टयेर में अनार की बुवाई की थी। जिसमें से वर्तमान में अकेले दाता गांव में किसानों की ओर से करीब 125-150 हैक्टेयर में अनार के बगीचे तैयार किए हैं। जबकि इससे पूर्व वर्ष 2010 में मात्र पांच किसानों ने 25 हैक्टेयर में ही अनार की खेती शुरू की थी। नकदी फसल के रुप में लाखों रुपए की आमदनी होने पर गांव के बाकी किसान भी अनार की खेती में रुचि दिखाने लगे। जिससे पहले जहां पारंपरिक खेती करने के दौरान उसी जमीन से किसान को भरपूर मेहनत के बाद करीब लाख से डेढ़ लाख के बीच आमदनी होती थी। अब खेत के मात्र एक हैक्टेयर से 8 से 10 लाख रुपए कीमत की अनार पैदा होती हैं। जबकि उसी खेत में पारंपरिक खेती से एक से डेढ़ लाख तक की आमदनी होती थी। नर्मदा नहर से वंचित क्षेत्र में रायड़ा अरंडी की पैदावार होती हैं, ऐसे में यदि वहां अनार के बगीचे तैयार किए जाए तो किसानों की आमदनी बढ़ सकती हैं।
सांचौर :- क्षेत्र के दाता गांव में एक खेत में रोपे गए अनार के पौधे।
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